साहित्यं नाम यत्र सामाजिकजनानां कृते न केवलं रसस्य प्रतीतिर्जायते, अपितु गुणरीतिवक्रोक्त्यलंकारध्वन्यभिधालक्षणाव्यञ्जनानामपि ज्ञानं भवति। भरत-भामह-वामन-आनन्दवर्धन-कुन्तक-क्षेमेन्द्र-विश्वनाथ-जगन्नाथ-रेवाप्रसादद्विवेद-राधावल्लभै: काव्यशास्त्रस्य परम्परा यत्र प्रवाहिता, सर्वेषु काव्यशास्त्रेषु विभिन्नानि तत्त्वानि काव्यसौन्दर्यधायकानि सन्ति तेषु गुणालकारयो: विवेचनं महत्त्वपूर्ण वर्तते गुणानां स्थान काव्ये तथैव भवति यथा शरीरे शौर्यादीना गुणाना स्थिति: भवति, अलंकाराणां च स्थिति: तथा भवति यथा शरीरे आभूषणानां भवति तैश्च सौन्दर्यं वर्धते, एवम् अलंकारगुणयो: ज्ञानं सर्वेषां कृते भवतु इतिधिया अस्य पाठ्यक्रमस्य समावेश: मया विहित:।

                            साहित्य उसको कहा जाता है जो सामाजिकों के हृदय में न केवल रस की प्रतीति कराये अपितु गुण अलंकार वक्रोक्ति अलंकार ध्वनि अभिधा लक्षणा व्यंजना का भी ज्ञान कराये, भरत भामह वामन आनन्दवर्धन कुन्तक क्षेमेन्द्र विश्वनाथ जगन्नाथ रेवाप्रसाद द्विवेदी राधावल्लभ आदि के द्वारा काव्यशास्त्र की परम्परा को बढाया गया, सभी काव्य के सौन्दर्यधायक तत्त्वों का वर्णन काव्यशास्त्र में किया जाता है उनमें गुण और अलंकारों का स्थान महत्त्वपूर्ण है काव्य में गुणों का स्थान शरीर में विद्यमान शौर्य आदि की तरह से होता है और अलंकारों का स्थान शरीर के आभूषणों की तरह से होता है जो शरीर की शोभा बढ़ाते हैं, इस कारण से सभी को इनका ज्ञान होना चाहिए इस उद्देश्य से इस पाठ्यक्रम का समावेश मैने यहाँ पर किया है।